गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

वास्तव में "कुमावत" कौन है


श्री राजपूत सभा जयपुर द्वारा प्रकाशित"राजस्थान के कछवाहा" नामक पुस्तक में लेखक कुंवर देवी सिंह मण्डावा ने कछवाहा राजवंश की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि में लिखा है कि आमेर के राजा श्री चन्द्रसेन जी के राज्य काल में दिल्ली के लोदी सुल्तान के सेनापति हिन्दाल ने जब अमरसर के शेखावतों पर हमला किया तब राजा चन्द्रसेन जी ने अपने छोटे पुत्र कुम्भा जी को राव रायमल जी शेखावत की मदद को भेजा । इस युध्द में कुम्भा जी वीरता पूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।
वर्तमान में कुम्भा जी के वंशज "कुम्भावत" या "कुमावत" कहलाते हैं ।
कुमावतों का मुख्य ठिकाना महार था । कुमावतों का महार ताजिमी ठिकाना था । कुमावतों का छोटी महार,बघवड़ा,पालड़ी,बीसोल्या आदि ठिकाने थे । बीकानेर राज्य में कुमावतों का एक ठिकाना सादि ताजीमा भालेरी(चुरु) था। आमेर के राजा श्री चन्द्रसेन जी की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र पृथ्वीराज जी आमेर की गददी पर 11 फरवरी सन 1503 को बैठे । राजा पृथ्वीराज के बाद उनके पुत्र राजा भरमल जी ने कछवाहा राजपूतों की 12 कोटड़ी(खांप या तड़) कायम की "12 कोटड़ी" पुस्तक अनुसार (1) हमीरदेका , (2) कुम्भाणी , (3) स्योब्रहमपोता , (4) वणवीरपोता , (5)कुमावत ,(6)पच्याणोत ,(7)सुलतानोता , (8)नथावत , (9)खंगारोत ,(10)बलभद्रोत , (11) चतुर्भुजोत , (12)कल्यणोत , आदि सर्व मान्य 12 कोटड़ी थी ।
जयपुर मर्दुमशुमारी (सम्वत 1889 ) के अनुसार कछ्वाहा राजपूतों की (1) हमीरदेका , (2) कुम्भाणी , (3) स्योब्रहमपोता ,  (4)कुमावत , (5)रामसिहोत , (6)पच्याणोत ,(7)सुलतानोता , (8)नथावत , (9)खंगारोत ,(10)बलभद्रोत , (11) चतुर्भुजोत , (12)कल्यणोत , (13) पुरण्मलोत, (14)प्रतापपोता, (15) सांईदासोत, (16) कोटड़ी (खाप) थी ।
                 उपरोक्त एतिहासिक रिकार्ड से स्पष्ट है कि "कुमावत" कछहावा राजपूतों की एक कोटड़ी या खांप है । जो आमेर के राजा श्री चन्द्रशेन जी  के छोटे पुत्र कुम्भा जी के वंशज है । वर्तमान में "कुमावत" कोटड़ी के कछहावा राजपुत जयपुर के आसपास  आमेर,चौमूं व शाहपुरा तहसील के गांव छोटी महार ,बड़ी महार,बगवाड़ा,पुन्याणा व अमरपुरा मे तथा चुरु जिले में भालेरी गांव में निवास करते है । अतः कुम्हार जाति को "कुमावत" शब्द लिखने का अधिकार नही है ।
                                                                                    सौजन्य से (प्रजापति दर्पण निर्माता)
                                                                                            " जय श्री प्रजापति समाज "

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

"श्री प्रजापति समाज का संकल्प पत्र"


प्रिय प्रजापति समाज बन्धुओं,
                   आपको जानकर अत्यंत हर्ष होगा कि समाज में फैली कुरुतियां व झुठी शान को बढ़ावा देने वाली झुठी शान-शोकत वली बुराई को मिटाने व समाज में गरीबी-अमीरी को परस्पर ताल-मेल बिठाने हेतु समाज बन्धुओं ने निम्न प्रकार के विचार बिन्दू रखें हैं, जिनको हम सब समाज बन्धुओं को अमल में लाना हैं।
1. समाज में मृत्यु होने पर बैठक होती है उस बैठक में चाय पीना और पिलाना बन्द  किया गया है, जहां तक हो सके मृत्यु भोज भी खाना बन्द करें।
2.समाज में मृत्यु उपरांत होने वाली पगड़ी रस्म(टीका) में 500/ रु., भात की पहरावणी में 1100/रु. व शादी की पहरावणी(कचौला) में 2100/रु. से ज्यादा नही देगें इससे कम देने और लेने वाले समाज के प्रेरणादायक महापुरुष होगें।
3.मरने उपरांत गंगा जी जाने पर बेटी-जंवाई को ले जाना मना है, शीशी पूजन पर एक जोडे को ही कपड़ा देवें, अगर किसी का पति मरता है और उसकी औरत तीर्थ पर साथ जाती है तो उसको भी लूगड़ी,कपड़े दे सकते हैं।
4.मरने पर खफन(दुसाला)ससुराल व पीहर वाले ही औढ़ावें बाकि रिश्तेदार नारियाल व गुलाल ही ले कर जावें,यह नारियल उस चिता में एक हवन का काम करेगा जबकि दुसाला श्मशानों में उड़ता फिरता हैं।
5.शादी की पहरावणी के भात में अपनी बहन-बेटी साथ ले जाने पर कपड़ा नही देवें,अगर देना है तो अपने घर आने पर देवें,वहाँ केवल समधी के बताये गये कपड़ें ही लेकर जावें, अगर उस गाँव में अपने गाँव की लड़की है या परिवार की लड़की है तो उसका कपड़ें दे सकते हैं।
6.जामणा(जलवा) की पहरावणी बन्द रहेगी ज्यादा से ज्यादा सासुओं कपड़े दे सकते हैं।
              ये उपरोक्त नियम समाज के प्रतिभा सम्मान समारोह जुगजीवण बाबा दादर बावड़ी स्थान पर लिया गया, जिसमें समाज की समिति के पदाधिकारीगण,प्रजापति विकास परिषद के अध्यक्ष व पदाधिकारीगण,चौमुँ-आमेर तहसील के सभी ब्लाँको के अध्यक्ष व पदाधीकारीगण तथा राजस्थान के कोने-कोने से पधारें समाज के समाज सेवी महानुभाओं के समक्ष यह नियम समाज के उत्थान के लिए समाज में लागू करने का संकल्प लिया गया, जिसमें सभी समाज बन्धुओं से करबध अनुरोध है कि इन नियमो का पालन करें । आपका यहाँ सहयोग समाज को नई उचाईयों पर ले जाने व समाज के विकास में भागीदारी रहेगी।
                                       “जय प्रजापति समाज”

सोमवार, 5 सितंबर 2011

प्रजापति समाज संगठित हो


प्रजापति विकास समिति चौमूँ-आमेर को समाज के हर घर तक पहुँचाने के प्रयासों के मध्य नजर दिनांक 04/09/2011 को गोविन्दगढ़ ब्लाँक की कार्यकारिणी का गठन किय गया। ब्लाक के गाँवों के समाज बन्धुओं ने सर्वसम्मति से अध्यक्ष सुणाराम जी होदकास्या मलिकपुर,सचिव मुरलीधर जी बारावाल मलिकपुर तथा कोषाध्यक्ष कजोड़मल बासनीवाल गोविन्दगढ़ को बनाया गया।
नव नियुक्त अध्यक्ष ने इस अवसर पर बोलते हुए कहाँ कि,समाज का विकास तभी हो सकता है जब हम सभी को साथ लेकर चले और आपसी मतभेदों को भूलाकर समाज विकास को सर्वोपरि माना जाये।
इस मौके पर मुख्य कार्यकारिणि के कई सदस्य मौजूद थे।

बूँद से बूँद मिले दो बंधु,
विशाल सगार बनता है।
तिनका का तिनके से मिलकर,
हाथी को बस में करता है।
कण से कण जुड़कर,
मजबूत बाँध दिवार बनती है।
चिनगारी से चिनगारी मिलकर,
शोलों सी भड़कती है।
मिट्टी को रौन्दते युवा मेरे,
कलयुग में संघ शक्ति होती है।

                      "जय प्रजापति समाज" 

समाज के दान दाताओं से विनम्र अपील !


समाज (प्रजापति) में दानदाताओं की कोई कमी नही समाज के नाम पर हर वर्ष समाज का करोडों रुपये, किसी मन्दिर,धर्मशाला या अन्य आयोजनों के नाम पर दान पेटी में जाता हैं। राजस्थान प्रदेश कि बात करें तो मारवाड क्षेत्र में एक कुम्हार!प्रजापति समाज की पट्टी में आपकों समाज का मन्दिर मिलेगा। भारत का तकनीकि शहर बैंगलुरु में मुझे दो बार जाने का अवसर मिला।बैंगलुरु के चारों हिस्सो में प्रजापति समाज के संगठन कार्य कर रहे है। जिनमें से एक संगठन ने कोटनपेट व दूसरे ने कुत्तुनूरधिचें में एक वर्ष पूर्व समाज के करोडों रुपयों का संग्रह कर श्रीयादे माता मन्दिरों की स्थापना की। मन्दिरो से किसी को लाभ हुआ या नही पर मुझे दुःख है कि अगर इतने रुपयों का निवेश समाज की युवा पीढ़ी की शिक्षा पर खर्च किये जाते तो समाज को कई नये इंजिनियर,डाँक्टर और अधिकारी तैयार होटल जो समाज के साथ_साथ देश के विकास में भी अहम भूमिका निभाते।
दान देते समय कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखे।
1. आप के दान का पुण्य तभी आपको मिलेगा जब उसका लक्ष्य पवित्र होगा।
2. दान देते समय यह विचार नही करना चाहिए की इससे समाज में आपका नाम कितना होगा।
3.दिये गये दान का सही जगह तथा पूर्ण इस्तेमाल हुआ है या नही इसका अवश्य ध्यान रखे।
4. समाज में असामाजिक तत्वों के कारण कई बार आपका दान गलत हाथों में चला जाता ।
दान देकर इतिश्रीकर लेना समाज के विकास को पिछे की ओर धकेलता है,अगर आपके दान दिये धन से कोई अपराधी या गलत संगत को चला जाता है तो इसके दोषी भी आप ही होंगे।
समाज के होनहार विधार्थी की सहायता कीजिए,समाज की बालिकाओं को शिक्षित होने में सहयता कीजिए।मुर्ति मन्दिरो से आपकों दुआएँ न जाने कब मिलेंगी पर बालिकाओं, कमजोर समाज के विधार्थियों की सहायता करने में आपकी आत्मा को शांति व शुकुन अवश्य प्राप्त होगा।
                                  जय प्रजापति समाज
                             श्री रामरतन जी गोविन्दगढ़  

शनिवार, 3 सितंबर 2011

मिट्टी को रौदंता युवा


चला हूँ अकेला,
राह में साथ किसी का मिल जायेगा ।
देख समाज की दशा,
आशा है सुलगता दिया कोई मिल जायेगा ।
बातों में पुल बाँधते,
डूबने से है अछा, कोई किनारा मिल जायेगा ।
पैंसठ के हुये नेता,
मिट्टी को रौंदंता युवा कोई राह में मिल जायेगा।
              
         "जय श्री प्रजापति समाज" 

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

अब बारी है


अब बारी है कुछ करने की।
पैसठं साल गुजर गये सोने में,
अब तो समय मुहँ धोने का हैं।
अज्ञानता के साथ बहुत जी लिए,
अब विवेकी बनने की बारी हैं।
क्यों दूसरों को वोट देता आया,
अब वोट लेने की बारी हमारी है।
अब जाग ओ मेहनत के पुजारी,
समाज की एकता दिखाने की बारी है।
फूट डाल राज दूसरे करते रहे,
यह राज समझने की बारी हमारी है।
                              
      श्री रामरतन जी प्रजापति 

दिवा स्वप्न रहा , माटी कला बोर्ड


बढ़ती महँगाई और घटती आमदनी के बीच प्रजापति समाज की आजीविका का स्त्रोत मिट्टी से बर्तन बनाना,मुश्किल होता जा रहा है। आज कुम्हार परिवारों की हालात यह हैं कि खराब हो रही आर्थिक स्थिती के कारण समाज के लोग मूल व्यवसाय को छौड़कर अन्य व्यवसायों की ओर मुहँ ताकना पड़ रह है।
प्रजापति समाज की स्थिति सुधारने के लिये राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने माटी कला बोर्ड का गठन किया था। परंतु वर्तमान कांग्रेस सरकार ने वोट बैंक की राजनीति के चलते माटी कला बोर्ड का गठन नही किया । जिससे इस बोर्ड के गठन से प्रजापति समाज को जो लाभ मिलने वाला है,वह मात्र समाज बंधुओं के लिए दिवा स्वप्न ही रहा है।
                                                              
                                                            "जय श्री प्रजापति समाज"

बुधवार, 31 अगस्त 2011

प्रजापति समाज ने किया विषपान

जय श्री राम,जय श्री राम,जय श्री राम मैं आज राम के नाम का सहारा ले रहा हूँ,क्योंकि संकट के समय मात्र राम का नाम ही उस संकट से बचा सकता है।संकट घबराइए नही,मेरे ऊपर किसी भी प्रकार का संकट नही आया,पर समाज पर आये संकट से मैं अपने आप को अलग भी नही कर                         सकता।
 हमारा प्रजापति समाज वर्तमान में अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। जहाँ बुरे समय की बात है भगवान राम को भी इस बुरे समय ने राजगद्धी पर बैठने के बजाए 14वर्ष के लिए वनवास में जाना पडा था।इससे भी बढ़कर माता सीता जी को रावण उठा कर ले गया।ये सारी बातें स्पष्ट करती है कि बुरा समय किसी को भी माफ नही करता।
प्रजापति जो मिट्टी के बर्तन बनाता था और चारों ओर श्रेष्ठ माना जाता था परंतु उस मेहनत व ईमानदार प्रजापति ने राजा इन्द्र की तरह कभी भी अहं भाव नही रखा और अपना नियत काम करने लगा। धीरे-धीरे प्रजापति समाज के भरण_पोषण की समस्या आने लगी।मेहनती और मिट्टी के बर्तन बनने की कला में निपुण प्रजापति समाज के कुछ सदस्यो ने अपना कौशल मकान बनाने के क्षेत्र में दिखाना शुरु किय।मकान बनाने खेती करने के व्यवसाय प्रजापति समाज के लोगों ने अपनाया और उनकी आर्थिक स्थिति बर्तन बनाने वाले उस समाज बन्धु से कई गुना अच्छी हो गई।
प्रजापति समाज के लिये बुरा समय आ चुका था। मेटेड़ा,चेजारा या खेतेड़ा।
चेजारा/खेतेड़ वर्ग में अहं भाव निम्न कारणों से आया:>
1. मकान निर्माण व खेती के व्यवसाय में कम समय में आर्थिक स्थिती हुई मजबूत।
2. भवन निर्माण के कारण समाज के अच्छे लोगों व रियासत कालीन शासन_प्रशासन से अच्छे सम्पर्क।
3.चेजारा/खेतेड़ अपने समक्ष समाज के लोगों में ही शादी विवाह के रिस्ते करने लगे।
4.समाज का यहाँ वर्ग अपने मूल समाज जो मिट्टी के बर्तन बनाता था,उससे सम्बन्ध रखने में शर्म महसूस करने लगा।
5.चेजारा/खेतेड़ कुम्हार ने शर्म के कारण अपने आप को कुम्हार कहलाने में भी शर्म महसूस होने लगी और जाति के नए नाम की तलाश शुरु की।
किसी ने सही कहा है की जब समय अच्छा चल रहा हो तो उस पर कभी घमंड नही करना चाहिये।क्योंकि समय परिवर्तनशील है।प्रजापति समाज का जो वर्ग मकान बनाने का कार्य करता था,वह राजस्थान के राजपूतों के समय बने किलों व भवनों में काम किया करता था।राजपूतों के गोत्रो में आप पायेंगे की आवत प्रत्यक्ष जुड़ने से शब्द बने है।
इतिहास के करीबी जानकार यहाँ जानते है कि एक राजपूत रानी के साथ कई दासियो के रुप में औरते महलो में रहती थी।इन दासियों से जो संताने पैदा हुई उनका सम्बन्ध चेजारा वर्ग से हुआ।शासक वर्ग ने रुपये,जमीन व अन्य प्रकार का लालच देकर चेजारा वर्ग के कुम्हार को आर्थिक रुप से सम्पन्न किया और दासी पुत्रो या अवैद्य संतानों का सम्बन्ध इस वर्ग से हुआ और यही नही इस कलंक के साथ समाज के नाम को एकआवत प्रत्यक्ष भी मिला यह वर्ग अपने आप को कुमावत! कुमावत क्षत्रिय के रुप में सम्बोधित करने लगा।यह सम्पूर्ण जानकारी के लिए प्रजापति पुँज पाक्षिक समाचार पत्र पता: 135 छह दुकान वीर हनुमान मन्दिर,ब्रह्मपुरी,जयपुर मे प्रकाशित हो चूकी है।
प्रजापति बना शिव
जब देवता और दानवो ने मिलकर समुद्र में डूबी अथाह! बहुमूल्य चीजों को निकालने के लिए समुद्र मंथन किय तो अच्छी चीजो के साथ प्राणघातक विष भी निकला। उस समय सभी देवता और दानव घबरा गये कि इस विष का पान कौन करें ? भगवान शिव ने उस विष का पान किया और उसको कंठ से नीचे नही उतरने दिया और इस तरह देवता और दानव सभी बच गये।अवैध राजपूतों की संतानो को चेजारा वर्ग के कुछ लोगों ने अपनाया और अपने आपको राजपूतों का खून मानकर क्षत्रिय कहलाने लगे।क्या बबूल के पेड़ के एक आम लटका देने से क्या सम्पूर्ण पेड़ आम का हो जायेगा? नही उसका अस्तित्व बीज तो बबूल का ही तो है।
कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय समाज की प्रदेश में अवस्थिति:-
1.जयपुर रियासत क्षेत्र में ही सबसे अधिक संख्या।
2.प्रदेश के दो तीन जिलों को छौड़कर कही नही मिला (मूल कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय शब्द)।
   मैं स्वयं प्रदेश के पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर_दक्षिण जिलों में घूम चूका हूँ जहाँ आज भी समाज प्रजापति के रुप में माना जाता हैं।
3.अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग जब इस वर्ग में जातियों को सम्मिलित कर रहा था तो उस समय प्रजापति समाज के लोगों ने ही स्वीकार किया था कि यहाँ वर्ग हमारा हैं।
4. प्रजापति आपको कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा गुजरात से असम तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है परंतु कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय नही ।
5.मैं कई ऐसे लोगों के नाम जानता हूँ जिनके परिवार वाले मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते थे और वे आज कुमावत बन बैंठे हैं।
   अपने गौरव को जब भी किसी व्यक्ति,समाज या देश ने भूला देने की कोशिश की है वह उसके लिए हानिकारक साबित हूआ हैं।भारत देश जो विश्व गुरु के स्थान पर शोभित था अपने गौरवपूर्ण इतिहास को भूलाने के कारण यहाँ अंग्रेजों का गुलाम बन गया।
अतः प्रजापति समाज अपने गौरव को पुनः प्राप्त करें और इसके लिए किसी प्रकार के संघर्ष की आवश्यकता नही अपनी जड़ों की ओर झाँकने मात्र की जरुरत है।
                                  
      जय श्री राम, जय प्रजापति समाज                                       
                                                     सौंजन्य आभार      
                                                    श्री रामरतन जी (गोविन्दगढ़)
                                                   मोबाइल नं.+918890426647

सोमवार, 29 अगस्त 2011

श्रीयादे माँ (शक्ति स्वरुपा)


प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा राज्य करता था।कठोर तप के बल पर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर यह वरदान प्राप्त करने मे सफल हो गया कि वह ना दिन-रात,ना धरती-आकाश और ना ही किसी अस्त्र-शस्त्र से उसकी मृत्यु नही हो सकती।
वरदान प्राप्ति के पश्चात हिरण्यकश्यप ने अपने आप को अमर घोषित कर दिया।हिरण्यकश्यप ने अमर होने के अहं में अपने आपको ईश्वर मानने लगा और सम्पूर्ण राज्य में ईश्वर के नाम पर प्रतिबंध लगा दिया और स्वयं का नाम ईश्वर की जगह घोषित कर दिया।
हिरण्यकश्यप के राज्य में एक प्रजापति का परिवार था। परिवार के मुखिया उड्यकेशर जी थे तथा उनकी पत्नी का नाम श्रीयादे देवी था।हिरण्यकश्यप का एकलौता पुत्र जिसक नाम प्रहलाद था वह उस प्रजापति के घर उसकी निर्माण कला को देखने बालसुलभ भाव से देखने जाया करता था।एक बार प्रजापति परिवार ने मिट्टी के कच्चे घडों को पकाने के लिए हाव पकाना शुरु किया। चारों ओर आग की लपटें उठ रही थी, मिट्टी के बर्तन लाल हो गये थे,उसी समय एक बिल्ली वहाँ आकर जोर-जोर से मार्मिक आवाजे करने लगी,बिल्ली को चारो तरफ इस तरह चक्कर लगाते देख श्रीयादें सारी बात समझ गई।इतने में राजकुमार प्रहलाद भी वहाँ आ पहुँचे। बिल्ली की व्याकुलता को देख प्रहलाद ने श्रीयादे से पूछा कि यहाँ बिल्ली इस तरह मार्मिक ध्वनि क्यों कर रही है? तब श्रीयादे ने बताया कि इस बिल्ली के बच्चे एक घडे में थे और भूलवश वह घडा भी हमने इस हाव में रख दिया।
"तो अब बिल्ली के बच्चे तो आग में जल गये होंगे" ? प्रहलाद ने कहा।इतना सुनते ही श्रीयादे ने दोनो हाथ जोड कर आँखे बन्द करते हुर कहा कि नही भगवान नारायण उन बिल्ली के बच्चो की रक्षा करेंगे।प्रहलाद ने कहा कि इस संसार में भगवान तो मेरे पिताश्री ही है।और कोई उन बिल्ली के बच्चो की रक्षा कैसे कर सकता है? तब श्रीयादे ने प्रहलाद को समझाया कि आपके पिता से भी बढकर है जो इस संसार के कण-कण में विद्यमान है वे ही मनुष्य को कष्टो से बचाते है और उनके नाम का स्मरण करने मात्र से उनकी कृपा प्राप्त हो जाती है।इस तरह भगवान के नाम स्मरण की महिमा सुनकर भक्त प्रहलाद बोले कि कल सुबह मेरे आने के बाद ही हाव(न्यावडा) को खोलना। मैं देखना चाहता हूँ कि तुम्हारे भगवान क्या उन बिल्ली के बच्चो की रक्षा कर पाते है या नही?अपराध बोध के चलते श्रीयादे का प्रभु नाम स्मरण ओर भी प्रबल हो गया और कब सुबह का सूरज निकला पता नही चला।
राजकुमार प्रहलाद आ चूके थे और श्रीयादे ने भगवान नारायण को हाथ जोडकर प्रार्थना की और हाव में से पक्के हुए मिट्टी के घडो को हटाने लगी।परिवार,आस-पास के लोग तथा राजकुमार प्रहलाद निकले वाले घडो पर नजर गडाये हुये थे।और वह क्षण आया जब प्रभू नाम के स्मरण का चमत्कार सबने देखा एक घडे मे बिल्ली के बच्चे आराम से अठ्खेलिया करते नजर आये।
यह देख प्रहलाद भगवान के नाम का स्मरण श्रीयादे की प्ररेणा से करने लगा।और वह आगे चलकर भक्त प्रहलाद के रुप में संसार में प्रसिध्द हुआ जिसकी रक्षा हेतु स्वयं भगवान ने नृसिंह रुप में अवतार लिया।उसी भक्त प्रहलाद को प्रभू स्मरण का पहला पाठ श्रीयादे माँ ने पढाया था।


                                                                                     जय श्री प्रजापति

रविवार, 28 अगस्त 2011

श्री प्रजापति

सृष्टि कि रचना निर्माण,प्रबंध और संहार के कार्यो को अलग-अलग देवताओ को दिया गया है।ब्रह्मा जी को रचयिता,विष्णु को पालनकर्त्ता व महाकाल शिव को संहारकर्ता के रुप में माना जाता है।
प्रजापति को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है।ब्रह्मा जिन्होने सृष्टि  का निर्माण किया। प्रजापति को ही ब्रह्मा के 
स्वरुप में माना जाता रहा है। इससे स्पष्ट है कि प्रजापति का स्थान सर्वेश्रेष्ठों में आता है।
प्राचीन वैदिक भाषा में प्रजापति को कुम्भकार के नाम से जाना जाता था और कुम्भकार शब्द कालांतर में तदभव रुप में कुम्हार बन गया।कुम्भ अर्थात कलश का प्राचीन काल से महत्त्व चला आ रहा है,कलश के शीर्ष,मध्य व अंतिम तल भाग में तीनो ब्रह्मा,विष्णु व सदाशिव का निवास माना गया है जिसके चलते कलश का वर्तमान में भी धर्मिक महत्त्व है। मिट्टी का कलश मात्र कलश नही देवताओ का निवास स्थल है,और जो इस कलश का निर्माता है,उसका सम्मान अपने आप ऊपर हो जाता है।   
                                                                                    
                                                                                                       रामरतन जी(गोविन्दगढ)

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