प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा राज्य करता था।कठोर तप के बल पर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर यह वरदान प्राप्त करने मे सफल हो गया कि वह ना दिन-रात,ना धरती-आकाश और ना ही किसी अस्त्र-शस्त्र से उसकी मृत्यु नही हो सकती।
वरदान प्राप्ति के पश्चात हिरण्यकश्यप ने अपने आप को अमर घोषित कर दिया।हिरण्यकश्यप ने अमर होने के अहं में अपने आपको ईश्वर मानने लगा और सम्पूर्ण राज्य में ईश्वर के नाम पर प्रतिबंध लगा दिया और स्वयं का नाम ईश्वर की जगह घोषित कर दिया।
हिरण्यकश्यप के राज्य में एक प्रजापति का परिवार था। परिवार के मुखिया उड्यकेशर जी थे तथा उनकी पत्नी का नाम श्रीयादे देवी था।हिरण्यकश्यप का एकलौता पुत्र जिसक नाम प्रहलाद था वह उस प्रजापति के घर उसकी निर्माण कला को देखने बालसुलभ भाव से देखने जाया करता था।एक बार प्रजापति परिवार ने मिट्टी के कच्चे घडों को पकाने के लिए हाव पकाना शुरु किया। चारों ओर आग की लपटें उठ रही थी, मिट्टी के बर्तन लाल हो गये थे,उसी समय एक बिल्ली वहाँ आकर जोर-जोर से मार्मिक आवाजे करने लगी,बिल्ली को चारो तरफ इस तरह चक्कर लगाते देख श्रीयादें सारी बात समझ गई।इतने में राजकुमार प्रहलाद भी वहाँ आ पहुँचे। बिल्ली की व्याकुलता को देख प्रहलाद ने श्रीयादे से पूछा कि यहाँ बिल्ली इस तरह मार्मिक ध्वनि क्यों कर रही है? तब श्रीयादे ने बताया कि इस बिल्ली के बच्चे एक घडे में थे और भूलवश वह घडा भी हमने इस हाव में रख दिया।
"तो अब बिल्ली के बच्चे तो आग में जल गये होंगे" ? प्रहलाद ने कहा।इतना सुनते ही श्रीयादे ने दोनो हाथ जोड कर आँखे बन्द करते हुर कहा कि नही भगवान नारायण उन बिल्ली के बच्चो की रक्षा करेंगे।प्रहलाद ने कहा कि इस संसार में भगवान तो मेरे पिताश्री ही है।और कोई उन बिल्ली के बच्चो की रक्षा कैसे कर सकता है? तब श्रीयादे ने प्रहलाद को समझाया कि आपके पिता से भी बढकर है जो इस संसार के कण-कण में विद्यमान है वे ही मनुष्य को कष्टो से बचाते है और उनके नाम का स्मरण करने मात्र से उनकी कृपा प्राप्त हो जाती है।इस तरह भगवान के नाम स्मरण की महिमा सुनकर भक्त प्रहलाद बोले कि कल सुबह मेरे आने के बाद ही हाव(न्यावडा) को खोलना। मैं देखना चाहता हूँ कि तुम्हारे भगवान क्या उन बिल्ली के बच्चो की रक्षा कर पाते है या नही?अपराध बोध के चलते श्रीयादे का प्रभु नाम स्मरण ओर भी प्रबल हो गया और कब सुबह का सूरज निकला पता नही चला।
राजकुमार प्रहलाद आ चूके थे और श्रीयादे ने भगवान नारायण को हाथ जोडकर प्रार्थना की और हाव में से पक्के हुए मिट्टी के घडो को हटाने लगी।परिवार,आस-पास के लोग तथा राजकुमार प्रहलाद निकले वाले घडो पर नजर गडाये हुये थे।और वह क्षण आया जब प्रभू नाम के स्मरण का चमत्कार सबने देखा एक घडे मे बिल्ली के बच्चे आराम से अठ्खेलिया करते नजर आये।
यह देख प्रहलाद भगवान के नाम का स्मरण श्रीयादे की प्ररेणा से करने लगा।और वह आगे चलकर भक्त प्रहलाद के रुप में संसार में प्रसिध्द हुआ जिसकी रक्षा हेतु स्वयं भगवान ने नृसिंह रुप में अवतार लिया।उसी भक्त प्रहलाद को प्रभू स्मरण का पहला पाठ श्रीयादे माँ ने पढाया था।
जय श्री प्रजापति
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