पानी भरकर आनेके उपरांत उसकी पत्नी बच्चेको ढूंढने लगी । बालक दिखाई नहीं देनेपर वह गोरा कुम्हारके पास गई । इतनेमें उसकी दृष्टि कीचडमें गई, कीचड रक्तसे लाल हुआ देखकर उसे समझमें आया कि बालक रौंदा गया है । वह जोरसे चीख पडी और अपने पतिपर बहुत क्रोध किया । अनजानेमें हुए इस कृत्यका प्रायश्चित समझकर गोरा कुम्हारने अपने दोनों हाथ तोड डाले । उसी कारण उसका कुंभकारका व्यवसाय बैठ गया । तब भगवान विठ्ठल-रखुमाई मजदूर बनकर उनके घरमें आकर रहने लगे । पुन: उसका कुम्हारका व्यवसाय फलने फूलने लगा ।
कुछ दिनों बाद आषाढी एकादशी आई । श्री ज्ञानेश्वरजी और श्री नामदेवजी यह संतमंडली पंढरपूर जाने निकली । मार्गमें तेरेडोकीमें आकर श्री ज्ञानेश्वरजीने गोरा कुम्हार तथा उसकी पत्नीको पंढरपुरमें अपने साथ लेकर गए । गरुड पारपर नामदेवजीका कीर्तन हुआ । ज्ञानेश्वरजीके समेत सर्व संतमंडली कीर्तन सुनने बैठी । गोरा कुम्हार भी अपने पत्नीके साथ कीर्तन सुनने बैठे । कीर्तनके समय लोग हाथ ऊपर उठाकर तालियां बजाने लगे । विठ्ठल नामका जयकार करने लगे; उस समय गोरा कुम्हारने भी अपने लूले हाथ अचानक ऊपर किए । तब उस लूले हाथोंको भी हाथ आ गए । यह देखकर संतमंडली हर्षित हुई । सर्व लोगोंने पांडुरंगका जयघोष किया ।
गोरा कुम्हारकी पत्नीने श्री विठ्ठलसे दयाकी भीख मांगी ।'' हे पंढरीनाथ, मेरा बच्चा पतिके चरणोंतले रौंदा गया; मैं बच्चेके बिना दुःखी हो गई हूं । हे विठ्ठल, मुझपर दया करो । मुझे मेरा बच्चा दो ।'' पंढरीनाथने उसकी विनती सुनी । कीचडमें रौंदा गया बच्चा रेंगते-रेंगते सभासे उसके पास आते हुए उसे दिखा । उसने जाकर बच्चेको अपनी गोदीमें लिया । संतमंडलीके साथ सभीने हर्षित होकर तालियां बजाई ।
बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है आपने|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंगौरा कुम्भकार पर तमिल,तेलगू एवं मराठी भाषा पर फिल्में भी बन चुकी है।
जवाब देंहटाएंगौरा कुम्भकार पर तमिल,तेलगू एवं मराठी भाषा पर फिल्में भी बन चुकी है।
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