बुधवार, 31 अगस्त 2011

प्रजापति समाज ने किया विषपान

जय श्री राम,जय श्री राम,जय श्री राम मैं आज राम के नाम का सहारा ले रहा हूँ,क्योंकि संकट के समय मात्र राम का नाम ही उस संकट से बचा सकता है।संकट घबराइए नही,मेरे ऊपर किसी भी प्रकार का संकट नही आया,पर समाज पर आये संकट से मैं अपने आप को अलग भी नही कर                         सकता।
 हमारा प्रजापति समाज वर्तमान में अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। जहाँ बुरे समय की बात है भगवान राम को भी इस बुरे समय ने राजगद्धी पर बैठने के बजाए 14वर्ष के लिए वनवास में जाना पडा था।इससे भी बढ़कर माता सीता जी को रावण उठा कर ले गया।ये सारी बातें स्पष्ट करती है कि बुरा समय किसी को भी माफ नही करता।
प्रजापति जो मिट्टी के बर्तन बनाता था और चारों ओर श्रेष्ठ माना जाता था परंतु उस मेहनत व ईमानदार प्रजापति ने राजा इन्द्र की तरह कभी भी अहं भाव नही रखा और अपना नियत काम करने लगा। धीरे-धीरे प्रजापति समाज के भरण_पोषण की समस्या आने लगी।मेहनती और मिट्टी के बर्तन बनने की कला में निपुण प्रजापति समाज के कुछ सदस्यो ने अपना कौशल मकान बनाने के क्षेत्र में दिखाना शुरु किय।मकान बनाने खेती करने के व्यवसाय प्रजापति समाज के लोगों ने अपनाया और उनकी आर्थिक स्थिति बर्तन बनाने वाले उस समाज बन्धु से कई गुना अच्छी हो गई।
प्रजापति समाज के लिये बुरा समय आ चुका था। मेटेड़ा,चेजारा या खेतेड़ा।
चेजारा/खेतेड़ वर्ग में अहं भाव निम्न कारणों से आया:>
1. मकान निर्माण व खेती के व्यवसाय में कम समय में आर्थिक स्थिती हुई मजबूत।
2. भवन निर्माण के कारण समाज के अच्छे लोगों व रियासत कालीन शासन_प्रशासन से अच्छे सम्पर्क।
3.चेजारा/खेतेड़ अपने समक्ष समाज के लोगों में ही शादी विवाह के रिस्ते करने लगे।
4.समाज का यहाँ वर्ग अपने मूल समाज जो मिट्टी के बर्तन बनाता था,उससे सम्बन्ध रखने में शर्म महसूस करने लगा।
5.चेजारा/खेतेड़ कुम्हार ने शर्म के कारण अपने आप को कुम्हार कहलाने में भी शर्म महसूस होने लगी और जाति के नए नाम की तलाश शुरु की।
किसी ने सही कहा है की जब समय अच्छा चल रहा हो तो उस पर कभी घमंड नही करना चाहिये।क्योंकि समय परिवर्तनशील है।प्रजापति समाज का जो वर्ग मकान बनाने का कार्य करता था,वह राजस्थान के राजपूतों के समय बने किलों व भवनों में काम किया करता था।राजपूतों के गोत्रो में आप पायेंगे की आवत प्रत्यक्ष जुड़ने से शब्द बने है।
इतिहास के करीबी जानकार यहाँ जानते है कि एक राजपूत रानी के साथ कई दासियो के रुप में औरते महलो में रहती थी।इन दासियों से जो संताने पैदा हुई उनका सम्बन्ध चेजारा वर्ग से हुआ।शासक वर्ग ने रुपये,जमीन व अन्य प्रकार का लालच देकर चेजारा वर्ग के कुम्हार को आर्थिक रुप से सम्पन्न किया और दासी पुत्रो या अवैद्य संतानों का सम्बन्ध इस वर्ग से हुआ और यही नही इस कलंक के साथ समाज के नाम को एकआवत प्रत्यक्ष भी मिला यह वर्ग अपने आप को कुमावत! कुमावत क्षत्रिय के रुप में सम्बोधित करने लगा।यह सम्पूर्ण जानकारी के लिए प्रजापति पुँज पाक्षिक समाचार पत्र पता: 135 छह दुकान वीर हनुमान मन्दिर,ब्रह्मपुरी,जयपुर मे प्रकाशित हो चूकी है।
प्रजापति बना शिव
जब देवता और दानवो ने मिलकर समुद्र में डूबी अथाह! बहुमूल्य चीजों को निकालने के लिए समुद्र मंथन किय तो अच्छी चीजो के साथ प्राणघातक विष भी निकला। उस समय सभी देवता और दानव घबरा गये कि इस विष का पान कौन करें ? भगवान शिव ने उस विष का पान किया और उसको कंठ से नीचे नही उतरने दिया और इस तरह देवता और दानव सभी बच गये।अवैध राजपूतों की संतानो को चेजारा वर्ग के कुछ लोगों ने अपनाया और अपने आपको राजपूतों का खून मानकर क्षत्रिय कहलाने लगे।क्या बबूल के पेड़ के एक आम लटका देने से क्या सम्पूर्ण पेड़ आम का हो जायेगा? नही उसका अस्तित्व बीज तो बबूल का ही तो है।
कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय समाज की प्रदेश में अवस्थिति:-
1.जयपुर रियासत क्षेत्र में ही सबसे अधिक संख्या।
2.प्रदेश के दो तीन जिलों को छौड़कर कही नही मिला (मूल कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय शब्द)।
   मैं स्वयं प्रदेश के पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर_दक्षिण जिलों में घूम चूका हूँ जहाँ आज भी समाज प्रजापति के रुप में माना जाता हैं।
3.अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग जब इस वर्ग में जातियों को सम्मिलित कर रहा था तो उस समय प्रजापति समाज के लोगों ने ही स्वीकार किया था कि यहाँ वर्ग हमारा हैं।
4. प्रजापति आपको कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा गुजरात से असम तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है परंतु कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय नही ।
5.मैं कई ऐसे लोगों के नाम जानता हूँ जिनके परिवार वाले मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते थे और वे आज कुमावत बन बैंठे हैं।
   अपने गौरव को जब भी किसी व्यक्ति,समाज या देश ने भूला देने की कोशिश की है वह उसके लिए हानिकारक साबित हूआ हैं।भारत देश जो विश्व गुरु के स्थान पर शोभित था अपने गौरवपूर्ण इतिहास को भूलाने के कारण यहाँ अंग्रेजों का गुलाम बन गया।
अतः प्रजापति समाज अपने गौरव को पुनः प्राप्त करें और इसके लिए किसी प्रकार के संघर्ष की आवश्यकता नही अपनी जड़ों की ओर झाँकने मात्र की जरुरत है।
                                  
      जय श्री राम, जय प्रजापति समाज                                       
                                                     सौंजन्य आभार      
                                                    श्री रामरतन जी (गोविन्दगढ़)
                                                   मोबाइल नं.+918890426647

12 टिप्‍पणियां:

  1. कुमावत जाति का इतिहास
    महोदय आपके द्वारा बताया गया कुमावत इतिहास सरासर गलत है। कुमावत (कुंबाबत) इतिहास न केवल गौरवशाली है अपितु शौर्य गाथाओं से पटा पड़ा है जिसका उल्लेख श्री हनुमानदान ‘चंडीसा’ ने अपनी पुस्तक ‘‘मारू कुंबार’’ में किया है। श्री चंडीसा का परिचय उस समाज से जो राजपूतों एवं कुमावत समाज की वंशावली लिखने का कार्य करते रहे हैं।
    कुमावत समाज के गौरवशाली इतिहास का वर्णन करते हुए ‘श्री चंडीसा’ ने लिखा है कि जैसलमेर के महान् संत श्री गरवा जी जोकि एक भाटी राजपूत थे, ने जैसलमेर के राजा रावल केहर द्वितीय के काल में विक्रम संवत् 1316 वैशाख सुदी 9 को राजपूत जाति में विधवा विवाह (नाता व्यवस्था) प्रचलित करके एक नर्इ जाति बनायी। जिसमें 9 (नौ) राजपूती गोत्रें के 62 राजपूत (अलग-अलग भागों से आये हुए) शामिल हुए। इसी आधार पर इस जाति की 62 गौत्रें बनी जिसका वर्णन नीचे किया गया है। विधवा विवाह चॅूंकि उस समय राजपूत समाज में प्रचलित नहीं था इसलिए श्री गरवा जी महाराज ने उन विधवा लड़कियों को एक नया सधवा जीवन दिया जिनके पति युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
    श्री गरवा जी के नेतृत्व में सम्पन्न हुए इस कार्य के उपरांत बैठक ने जाति के नामकरण के लिए शुभ शुक्न (मुहूर्त) हेतु गॉंव से बाहर प्रस्थान किया गया। इस समुदाय को गॉंव से बाहर सर्वप्रथम एक बावत कॅंवर नाम की एक भाटी राजपूत कन्या पानी का मटका लाते हुए दिखी। जिसे सभी ने एक शुभ शुगन माना। इसी आधार पर श्री गरवाजी ने जाति के दो नाम सुझाए - 1. संस्कृत में मटके को कुंभ तथा लाने वाली कन्या का नाम बावत को जोड़कर नाम रखा गया कुंबाबत (कुम्भ+बाबत) राजपूत (जैसे कि सुमदाय की तरफ कुंभ आ रहा था इसलिए इसका एक रूप कुम्भ+आवत ¾ कुमावत भी रखा गया) 2. इस जाति का दूसरा नाम मारू कुंबार भी दिया गया, राजस्थानी में मारू का अर्थ होता है राजपूत तथा कुंभ गॉंव के बाहर मिला था इसलिए कुंभ+बाहर ¾ कुंबार। इस लिए इस जाति के दो नाम प्रचलित है कुंबाबत राजपूत (कुमावत क्षत्रिय) व मारू कुंबार। इस जाति का कुम्हार, कुम्भकार, प्रजापत जाति से कोर्इ संबंध नहीं है। कालान्तर में जैसलमेर में पड़ने वाले भयंकर अकालों के कारण खेती करने वाले कुंबावत राजस्थान को छोड़कर देश के अन्य प्रांतों जैसे पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में चले गए। इस कारण से कुंबावत (कुमावत) एवं उसकी गोत्रों का स्वरूप बदलता रहा। लेकिन व्यवसाय (सरकारी सेवा, जवाहरात का कार्य व कृषि) एवं राजपूत रीति-रिवाजों को आज तक नहीं छोड़ा है।
    कुंबावत जाति की 62 गोत्रें निम्नलिखित हैं-
    भाटी चौहान पड़िहार राठौर पंवार तंवर गोहल सिसोदिया दैया
    1.बोराबड़ 1.टाक 1.मेरथा 1.चाडा 1.लखेसर 1.गेधर 1.सुडा 1.ओस्तवाल 1दैया
    2.मंगलाव 2.बंग 2.चांदोरा 2.रावड़ 2.छापोला 2.सांवल 2.कुचोरिया
    3.पोड़ 3.सउवाल 3.गम 3.जालप 3.जाखड़ा 3.कलसिया
    4.लीमा 4.सारड़ीवाल 4.गोहल 4.कीता 4.रसीयड़
    5.खुड़िया 5.गुरिया 5.गंगपारिया 5.कालोड़ 5.दुगट
    6.भटिया 6.माल 6.मांगर 6.दांतलेचा 6.पेसवा
    7.माहर 7.घोडे़ला 7.धुतिया 7.पगाला 7.आरोड़
    8.नोखवाल 8.सिंगाटिया 8.सुथौड़ 8.किरोड़ीवाल
    9.भीड़ानिया 9.निंबीवाल
    10.सोखल 10.छापरवाल
    11.डाल 11.सरस्वा
    12.तलफीयाड़ 12.कुकड़वाल
    13.भाटीवाल 13.भरिया
    14.आर्इतान 14.कलवासना
    15.झटेवाल 15.खरनालिया
    16.मोर
    17.मंगलोड़ा

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    1. में सोतवाल हूं मेरी कुलदेवी व इतिहास बताने का कष्ट करें

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  3. श्री नरेश कुमार सिंह कुमावत का कुमावत इतिहास बिल्कुल सही है।

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  4. श्री नरेश कुमार सिंह कुमावत द्वारा उल्लेखित कुमावत इतिहास बिल्कुल सही है।

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  5. कुम्हार= कुम्भ + कार अर्थ कुम्भ= घडा कार=कारीगरी करने वाला अथार्थ घडा बनाने वाला। कुम्हार आदि काल लाखों वर्षो से (रामायण, महाभारत) से ही है कुम्हारो में से एक जाती बनी जो घड़ा बनाना छोड़कर खेती करने लगी जिसे खतेड़ा कुम्हार कहने लगे

    कुम्भा जी एक क्षत्रिये राजपूत जाती से थे कुम्भा जी के वशं से एक जाती बनी जिसे क्षत्रिये कुमावत कहते थे कुम्भा जी की कुमावत जाती में विधवा विवाह प्रथा लागु हो गयी जो पहले राजपूतों में नहीं थी इसलिए राजपूत वंश ने कुम्भा जी की कुमावत जाती को राजपूत जाती से नीची श्रेणी में अलग कर दिया

    कुम्भा जी की क्षत्रिये जाती राजपूत जाति से निकल कर बनी जैसे राजपूत जाती से निकलकर यदुवंशी जाती बनी जो क्षत्रिये थे युद्ध लड़ते थे जिसमे कृषन भगवान का जन्म हुआ जो जाती आज राजपूत जाती से अलग होकर यादव जाती कहलाती है

    राजपूत कुम्भा जी की क्षत्रिये कुमावत जाती नीची श्रेणी में आने से कुम्हार से खतेडा कुम्हार बनी जाती भी कुमावत लगाने लगी जिससे राजपूत वंश को कोई एतराज नहीं हुआ इस प्रकार धीरे धीरे कुम्हार से खतेडा कुम्हार बनी जाती कुमावत लगाने लगे क्षत्रिये कुमावत

    आज तक के इतिहास में कोई कुम्हार कुमावत राजा नहीं बना जागीदार नहीं बना कभी युद्ध नहीं लड़ा

    में खतेडा कुम्हार हूँ जो कुमावत लगता हु लेकिन यह नहीं कहता की में कुमावत कुम्भा जी की जाती से होने पर लगता हूँ में कुमावत इसलिए लगता हु की में कुम्हार से बना खतेड़ा कुम्हार हु जिसमे कई पीढ़ियों से मटके नहीं बनते है सिर्फ खेती और मकान बनाने का काम करते है

    कुम्हार शब्द लाखों साल पुराने ग्रंथों जैसे रामायण महाभारत में मिल जायेगा लेकिन कुमावत शब्द कही नहीं मिलेगा

    अगर कुम्हार से खतेडा कुम्हार बना कुमावत अपने आपको कुम्भा जी की राजपूत जाती क्षत्रिये कुमावत बताता है तो उनके गोत्र लाखो साल पहले बनी कुम्हार जाती से क्यों मिलते है : जैसे दम्बीवाल, कुण्डलवाल, मारवाल, किरोड़ीवाल, राजोरियां, बासनीवाल, ये सब लाखो साल बनी कुम्हार जाती के गोत्र है. कुम्हार से बनी खतेडा कुम्हार जाती ने अपनी जाती तो बदल ली लेकिन गोत्र क्यों नहीं बदले

    कुम्हारों में कई लोग सोने चांदी के गहने बनाने का काम करते है जो कई सालो बाद पैसे वाले बन जायेंगे उनका रहन सहन हाव भाव विचार सब बदल जायेंगे जो आगे चलकर स्वर्णकार कुमावत लगाने लग जायेंगे सेकड़ों सालो बाद उनकी पीढियां कहेगी हमारी सुनारों से निकली हुए जाती है

    इसलिए गर्व से बोलो हम कुम्हार, प्रजापति, खतेडा, मतेडा, कुमावत = हम कुम्हार है

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  6. कुम्हार= कुम्भ + कार अर्थ कुम्भ= घडा कार=कारीगरी करने वाला अथार्थ घडा बनाने वाला। कुम्हार आदि काल लाखों वर्षो से (रामायण, महाभारत) से ही है कुम्हारो में से एक जाती बनी जो घड़ा बनाना छोड़कर खेती करने लगी जिसे खतेड़ा कुम्हार कहने लगे

    कुम्भा जी एक क्षत्रिये राजपूत जाती से थे कुम्भा जी के वशं से एक जाती बनी जिसे क्षत्रिये कुमावत कहते थे कुम्भा जी की कुमावत जाती में विधवा विवाह प्रथा लागु हो गयी जो पहले राजपूतों में नहीं थी इसलिए राजपूत वंश ने कुम्भा जी की कुमावत जाती को राजपूत जाती से नीची श्रेणी में अलग कर दिया

    कुम्भा जी की क्षत्रिये जाती राजपूत जाति से निकल कर बनी जैसे राजपूत जाती से निकलकर यदुवंशी जाती बनी जो क्षत्रिये थे युद्ध लड़ते थे जिसमे कृषन भगवान का जन्म हुआ जो जाती आज राजपूत जाती से अलग होकर यादव जाती कहलाती है

    राजपूत कुम्भा जी की क्षत्रिये कुमावत जाती नीची श्रेणी में आने से कुम्हार से खतेडा कुम्हार बनी जाती भी कुमावत लगाने लगी जिससे राजपूत वंश को कोई एतराज नहीं हुआ इस प्रकार धीरे धीरे कुम्हार से खतेडा कुम्हार बनी जाती कुमावत लगाने लगे क्षत्रिये कुमावत

    आज तक के इतिहास में कोई कुम्हार कुमावत राजा नहीं बना जागीदार नहीं बना कभी युद्ध नहीं लड़ा

    में खतेडा कुम्हार हूँ जो कुमावत लगता हु लेकिन यह नहीं कहता की में कुमावत कुम्भा जी की जाती से होने पर लगता हूँ में कुमावत इसलिए लगता हु की में कुम्हार से बना खतेड़ा कुम्हार हु जिसमे कई पीढ़ियों से मटके नहीं बनते है सिर्फ खेती और मकान बनाने का काम करते है

    कुम्हार शब्द लाखों साल पुराने ग्रंथों जैसे रामायण महाभारत में मिल जायेगा लेकिन कुमावत शब्द कही नहीं मिलेगा

    अगर कुम्हार से खतेडा कुम्हार बना कुमावत अपने आपको कुम्भा जी की राजपूत जाती क्षत्रिये कुमावत बताता है तो उनके गोत्र लाखो साल पहले बनी कुम्हार जाती से क्यों मिलते है : जैसे दम्बीवाल, कुण्डलवाल, मारवाल, किरोड़ीवाल, राजोरियां, बासनीवाल, ये सब लाखो साल बनी कुम्हार जाती के गोत्र है. कुम्हार से बनी खतेडा कुम्हार जाती ने अपनी जाती तो बदल ली लेकिन गोत्र क्यों नहीं बदले

    कुम्हारों में कई लोग सोने चांदी के गहने बनाने का काम करते है जो कई सालो बाद पैसे वाले बन जायेंगे उनका रहन सहन हाव भाव विचार सब बदल जायेंगे जो आगे चलकर स्वर्णकार कुमावत लगाने लग जायेंगे सेकड़ों सालो बाद उनकी पीढियां कहेगी हमारी सुनारों से निकली हुए जाती है

    इसलिए गर्व से बोलो हम कुम्हार, प्रजापति, खतेडा, मतेडा, कुमावत = हम कुम्हार है

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  7. कुमावत (क्षत्रिय) जाति के इतिहास संबंधी जानकारी

    कुमावत इतिहास के बारे में नरेश और मनीष जी ने ऊपर जो लिखा है वह बिल्कुल सही और प्रमाणिक है।
    मनीष जी की ये लार्इन ‘‘हाथ में कलम क्या आई, लोग कुछ भी लिखने लग जाते हैं ‘‘प्रहलाद बन्धु ने इसे कुमावत जाति की गलत जानकारी देकर सही सिद्ध कर दिया है। बन्धु, आपने कुमावत जाति के बारे में बहुत कुछ लिखा है तो आप निम्न जानकारी दें -
    1- कुम्भकार जाति आदि काल से (ये सही है और आपने भी लिखा है) है जबकि कुम्भावत (कुमावत) जाति तो 800 साल पहले बनी हैं। ये एक कैसे हो सकती हैं ?
    2- जिन राजपूतों ने विधवा विवाह अपनाया उनकों राजपूत जाति से नहीं निकाला गया और न ही किसी नीची श्रेणी में आए। उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए एक नयी जाति ‘कुम्भावत राजपूत’ बनायी। इतिहास में ऐसी कर्इ जातियॉं के उदाहरण हैं जिन्होंने किसी कारण वश मूल जाति से अलग होकर अपनी नर्इ जाति बनायी है। क्या आप किसी ऐसी अन्य जाति नाम बताओगे जिसने दूसरी जाति का नाम अपनाया हो ?
    3- यादव जाति महाराज यदु के वंशज है न कि राजपूत जाति से निकल कर बनी जाति है।
    4- कुम्भावत जाति का इतिहास न केवल युद्धों से अपितु युद्धवीरों से भरा पड़ा है। जैसलमेर के राजा रावल केहर को बादशाह की कैद से कुमावत जांबाजों ने युद्ध करके छुड़वाया था। जिसके बाद राजा ने अपना सिंहासन कुमावतों के गुरू गरवाजी को सौंपा दिया था। ऐसे युद्धों की हजारों घटनाएॅं कुमावत इतिहास में भरी पड़ी है।
    5- राजपूत जाति की गोत्रें चौहान, भाटी, पड़िहार, सौलंकी, तंवर ये सभी मेघवाल और नायक समाज में भी मिल जायेंगी। क्या ये सभी जातियॉं एक हैं ?
    6- प्रहलाद बन्धु आपकी जानकारी किसी किताब में लिखी हैं नाम बतायें ?

    बन्धु, कुम्भकार (प्रजापति) और कुमावत दो अलग-अलग जातियॉं है। ये ऐतिहासिक सत्य है इसे सहर्ष स्वीकारो। हॉं, कुछ प्रजापति (मटका व्यवसायी) अपने को कुमावत बनाने का प्रयास कर रहे हैं जोकि गलत है। आप उन्हें रोकें ताकि प्रजापति समाज का समाजिक विकास हो सके।

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  8. श्री नरेश कुमार सिंह कुमावत का कुमावत इतिहास बिल्कुल सही है।

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  9. mujhe to bus yah janna hai ki chandora gotra ki kul devi kon hai or inka mandir kaha par aaya hua hai please tell me 8769279101 call me

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  10. किसी भाई के पास बुरावङ गोत्र (बोराबङ)के तथ्य हो तो 7082761004 पर मैसेज करे

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