शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

अब बारी है


अब बारी है कुछ करने की।
पैसठं साल गुजर गये सोने में,
अब तो समय मुहँ धोने का हैं।
अज्ञानता के साथ बहुत जी लिए,
अब विवेकी बनने की बारी हैं।
क्यों दूसरों को वोट देता आया,
अब वोट लेने की बारी हमारी है।
अब जाग ओ मेहनत के पुजारी,
समाज की एकता दिखाने की बारी है।
फूट डाल राज दूसरे करते रहे,
यह राज समझने की बारी हमारी है।
                              
      श्री रामरतन जी प्रजापति 

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