जय श्री राम,जय श्री राम,जय श्री राम मैं आज राम के नाम का सहारा ले रहा हूँ,क्योंकि संकट के समय मात्र राम का नाम ही उस संकट से बचा सकता है।संकट घबराइए नही,मेरे ऊपर किसी भी प्रकार का संकट नही आया,पर समाज पर आये संकट से मैं अपने आप को अलग भी नही कर सकता।
हमारा प्रजापति समाज वर्तमान में अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। जहाँ बुरे समय की बात है भगवान राम को भी इस बुरे समय ने राजगद्धी पर बैठने के बजाए 14वर्ष के लिए वनवास में जाना पडा था।इससे भी बढ़कर माता सीता जी को रावण उठा कर ले गया।ये सारी बातें स्पष्ट करती है कि बुरा समय किसी को भी माफ नही करता।
प्रजापति जो मिट्टी के बर्तन बनाता था और चारों ओर श्रेष्ठ माना जाता था परंतु उस मेहनत व ईमानदार प्रजापति ने राजा इन्द्र की तरह कभी भी अहं भाव नही रखा और अपना नियत काम करने लगा। धीरे-धीरे प्रजापति समाज के भरण_पोषण की समस्या आने लगी।मेहनती और मिट्टी के बर्तन बनने की कला में निपुण प्रजापति समाज के कुछ सदस्यो ने अपना कौशल मकान बनाने के क्षेत्र में दिखाना शुरु किय।मकान बनाने खेती करने के व्यवसाय प्रजापति समाज के लोगों ने अपनाया और उनकी आर्थिक स्थिति बर्तन बनाने वाले उस समाज बन्धु से कई गुना अच्छी हो गई।
प्रजापति समाज के लिये बुरा समय आ चुका था। मेटेड़ा,चेजारा या खेतेड़ा।
चेजारा/खेतेड़ वर्ग में अहं भाव निम्न कारणों से आया:>
1. मकान निर्माण व खेती के व्यवसाय में कम समय में आर्थिक स्थिती हुई मजबूत।
2. भवन निर्माण के कारण समाज के अच्छे लोगों व रियासत कालीन शासन_प्रशासन से अच्छे सम्पर्क।
3.चेजारा/खेतेड़ अपने समक्ष समाज के लोगों में ही शादी विवाह के रिस्ते करने लगे।
4.समाज का यहाँ वर्ग अपने मूल समाज जो मिट्टी के बर्तन बनाता था,उससे सम्बन्ध रखने में शर्म महसूस करने लगा।
5.चेजारा/खेतेड़ कुम्हार ने शर्म के कारण अपने आप को कुम्हार कहलाने में भी शर्म महसूस होने लगी और जाति के नए नाम की तलाश शुरु की।
किसी ने सही कहा है की जब समय अच्छा चल रहा हो तो उस पर कभी घमंड नही करना चाहिये।क्योंकि समय परिवर्तनशील है।प्रजापति समाज का जो वर्ग मकान बनाने का कार्य करता था,वह राजस्थान के राजपूतों के समय बने किलों व भवनों में काम किया करता था।राजपूतों के गोत्रो में आप पायेंगे की “आवत” प्रत्यक्ष जुड़ने से शब्द बने है।
इतिहास के करीबी जानकार यहाँ जानते है कि एक राजपूत रानी के साथ कई दासियो के रुप में औरते महलो में रहती थी।इन दासियों से जो संताने पैदा हुई उनका सम्बन्ध चेजारा वर्ग से हुआ।शासक वर्ग ने रुपये,जमीन व अन्य प्रकार का लालच देकर चेजारा वर्ग के कुम्हार को आर्थिक रुप से सम्पन्न किया और दासी पुत्रो या अवैद्य संतानों का सम्बन्ध इस वर्ग से हुआ और यही नही इस कलंक के साथ समाज के नाम को एक”आवत” प्रत्यक्ष भी मिला यह वर्ग अपने आप को कुमावत! कुमावत क्षत्रिय के रुप में सम्बोधित करने लगा।यह सम्पूर्ण जानकारी के लिए “प्रजापति पुँज” पाक्षिक समाचार पत्र पता: 135 छह दुकान वीर हनुमान मन्दिर,ब्रह्मपुरी,जयपुर मे प्रकाशित हो चूकी है।
प्रजापति बना शिव
जब देवता और दानवो ने मिलकर समुद्र में डूबी अथाह! बहुमूल्य चीजों को निकालने के लिए समुद्र मंथन किय तो अच्छी चीजो के साथ प्राणघातक विष भी निकला। उस समय सभी देवता और दानव घबरा गये कि इस विष का पान कौन करें ? भगवान शिव ने उस विष का पान किया और उसको कंठ से नीचे नही उतरने दिया और इस तरह देवता और दानव सभी बच गये।अवैध राजपूतों की संतानो को चेजारा वर्ग के कुछ लोगों ने अपनाया और अपने आपको राजपूतों का खून मानकर क्षत्रिय कहलाने लगे।क्या बबूल के पेड़ के एक आम लटका देने से क्या सम्पूर्ण पेड़ आम का हो जायेगा? नही उसका अस्तित्व बीज तो बबूल का ही तो है।
कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय समाज की प्रदेश में अवस्थिति:-
1.जयपुर रियासत क्षेत्र में ही सबसे अधिक संख्या।
2.प्रदेश के दो तीन जिलों को छौड़कर कही नही मिला (मूल कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय शब्द)।
मैं स्वयं प्रदेश के पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर_दक्षिण जिलों में घूम चूका हूँ जहाँ आज भी समाज प्रजापति के रुप में माना जाता हैं।
3.अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग जब इस वर्ग में जातियों को सम्मिलित कर रहा था तो उस समय प्रजापति समाज के लोगों ने ही स्वीकार किया था कि यहाँ वर्ग हमारा हैं।
4. प्रजापति आपको कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा गुजरात से असम तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है परंतु कुमावत ! कुमावत क्षत्रिय नही ।
5.मैं कई ऐसे लोगों के नाम जानता हूँ जिनके परिवार वाले मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते थे और वे आज कुमावत बन बैंठे हैं।
अपने गौरव को जब भी किसी व्यक्ति,समाज या देश ने भूला देने की कोशिश की है वह उसके लिए हानिकारक साबित हूआ हैं।भारत देश जो विश्व गुरु के स्थान पर शोभित था अपने गौरवपूर्ण इतिहास को भूलाने के कारण यहाँ अंग्रेजों का गुलाम बन गया।
अतः प्रजापति समाज अपने गौरव को पुनः प्राप्त करें और इसके लिए किसी प्रकार के संघर्ष की आवश्यकता नही अपनी जड़ों की ओर झाँकने मात्र की जरुरत है।
जय श्री राम, जय प्रजापति समाज
सौंजन्य आभार
श्री रामरतन जी (गोविन्दगढ़)
मोबाइल नं.+918890426647