दुख: तो होता है और पश्याताप भी हम लोग कुछ भी कह ले कि एक कुम्हार(जो दुसरे सरनेम लगाते
है वो) अपने को दुसरे कुम्हार से अच्छा समझता है ।लेकिन खोट तो अपनों में ही थी ।क्यु
हमने तभी ये कदम नही उठाया कि हमारी जाति समाज को एक ही नाम जो युगो युगो से चला आ
रहा है उसी को रहने दिया जाये ।शायद उस समय अपने समाज में इतनी समझ नही थी कि ये दुसरे
सरनेम कुम्हार समाज में दिमक के जैसा लगकर अन्दर ही अन्दर खोखला कर देंगे ।
लेकिन अभी समाज शिक्षित भी है और जाग्रत भी । स्कुलो में समाज की नई पीढी
का निर्माण होता है ।ये ही वो जगह है जहाँ से हम अपने समाज कि खोई हुई "चेतना-शक्ति" प्राप्त कर सकते है
।
हम सभी यही से अपने बच्चों के सरनेम
में "कुम्हार प्रजापति" लगाये तथा उन को भी
ये सरनेम हर जगह उपयोग करने के लिये प्रेरित करे जो समाज में हर जगह ये एक क्रांति
कि तरह काम करेगा और अपना समाज अपनी खोई हुई पहचान फिर से पा सकेगा ।ये काम हम स्कुलो
में हर साल एडमिशन जब होता है तब कक्षा 10 से पहले के जितने भी अपने समाज के बच्चे है उनके सरनेम में थोडी सी मेहनत कर के बदलाव कर
सकते है । जिससे हमारा समाज भविष्य में एक शक्तिशाली समाज के रुप में उभर कर समने आ
सके । बाकी आप की क्या राय है ? समाज के सामने आप सभी समाज बन्धु रखे ताकि
समाज को आप से भी मार्गदर्शन प्राप्त हो सके ।
"जय समाज"